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देव दीपावली

काशी  के महत्व को देखें तो यह धर्मों और संस्कृतियों की राजधानी कही गई है। संस्कृति के विभिन्न आयोजनों से सदासदा विश्व को प्रेरित करती रही है। कार्तिक पूर्णिमा स्नान का महापर्व है जो दीपावली के पंद्रह दिन बाद होता है। काशी में पूर्णिमा स्नान की परंपरा अनादि और अनंत है।

 

पूर्णिमा के विषय में यह तथ्य जान लेना भी ज्ञानप्रद होगा कि जिस मास की पूर्णिमा होती है, उसी मास के नाम का नक्षत्र पूर्णिमा के दिन विद्यमान होता है। जैसे श्रावण पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र। उसी तरह कार्तिक पूर्णिमा को कृत्तिका नक्षत्र व्याप्त होता है। यह भी कहा गया है कि इस नक्षत्र का भगवान शिव की प्रसन्नता से प्रत्यक्ष संबंध है। त्रिपुरासुर का बध करने के अलावा भगवान कार्तिकेय का शिव पुत्र के रूप में जन्म लेना भी कृतिका नक्षत्र की संगति को सूचित करता है।

 

अब बात देव दीपावली करें तो जैसे कार्तिक मास की अमावस्या को भूतल के प्राणी प्रकृति के साथ दीपावली मना कर आह्लादित होते हैं, उसी तरह भूतल पर बहने वाली गंगा और पृथ्वी की पुण्य भूमि काशी में इस पूर्णिमा को देवताओं का देवलोक से अवतरण होता है अर्थात अतीन्द्रिय रूप से देवगण काशी की भूमि और गंगा के तट पर विचरण करते हैं।

 

उन्हें हम नंगी आंखों से देख न सकें तो भी वातावरण की रमणीयता देवताओं की उपस्थिति का प्रकट आभास कराती है। देवताओं के आगमन की बेला को दीपों की ज्योति से जोड़कर प्रकाश के महोत्सव का नाम देव दीपावली है।

 

काशी में कार्तिक पूर्णिमा का यह‌ स्वरूप‌ विस्तार वर्ष 1985 से बताया जाता है। प्रारंभ में केवल पंचगंगा घाट पर दीपमाला सुसज्जित की जाती थी, किंतु वर्षानुवर्ष यह प्रचलन बढ़ता गया और अब काशी के दक्षिणी घाट रविदास घाट से लेकर उत्तरी छोर के घाट राजघाट तक असंख्य दीपों की जगमगाहट देव दीपावली में देवताओं के अवतरण का चित्र खींचता है।

 

पूर्णिमा व्रत महत्वपूर्ण है। प्रत्येक वर्ष बारह पूर्णिमाएं होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर तेरह हो जाती है। काशी में अनादि काल से कार्तिक पूर्णिमा को “त्रिपुरी पूर्णिमा” या गंगा स्नान के पर्व रूप में भी जाना जाता रहा है। इस पूर्णिमा को त्रिपुरारि पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि इस दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारि के रूप में सुपूजित हुए थे।

 

ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृत्तिका नक्षत्र में विश्वनाथ के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। चन्द्रमा जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छह कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की परम प्रसन्नता प्राप्त होती है। इस‌ एक दिन गंगा नदी में स्नान से भी पूरे वर्ष स्नान का फल मिलता है।

 

हमारी संस्कृति में प्रत्येक पूर्णिमा को किसी ने किसी महापुरुष संत और ऋषि का जन्म भी हुआ है। इस क्रम में कार्तिक पूर्णिमा को भारत के महान संत भक्त और ईश्वर के अंश गुरु नानकदेव जी की जयंती भी होती है। जब हम देव पूर्णिमा के रूप में काशी में देवताओं का स्वागत करते हैं, तब हमारे मन में भी देवत्व का भाव जागृत होना चाहिए। क्योंकि रागद्वेष घृणा और अपकार रहित विमल भावना में ही देवता विराजमान होते हैं।

“भावो हि विद्यते देवा:”

 

जैसे घाटों पर दिये अपना प्रकाश लुटा रहे होते हैं, उसी तरह हम लोगों की जिंदगी में दीप बन कर रोशनी फैलाएं तथा दीप की तरह निर्मल, निश्छल और निष्कलंक जीवन की देववृत्ति में जीना सीखें, अंधेरे की आहट में प्रकाश बनकर टिमटिमाते रहें और जब बुझें तो दुनिया को उगता हुआ सूरज देकर जाएं। यही देव दीपावली का उत्तम निहितार्थ है।

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