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दिव्यानुभूति | निश्चलानंद सरस्वती जी | Part 1

दिव्यानुभूतिपूज्य शंकराचार्य जी का जीवन चरित्र पर आधारित ग्रन्थ से साभार गुरु भाईयो के विशेष आग्रह पर गुरुदेव के जीवन दर्शन को प्रेषित किया जा रहा है:- अनंत श्री विभूषित पुज्यपाद् गोवर्धन मठपुरीपीठाधीश्वर श्रीमज्जजगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग का जीवन दर्शन

श्री गुरुदेव भगवान का बचपन का नाम नीलाम्बर था गुरुदेव भगवान ब्रह्मचारी हुए तो उनका नाम ध्रुव रखा गया व सन्यास के बाद स्वामी निश्चलानंद सरस्वती हुए ।।

*गुरूचरण कमलेभ्यो नमः *

हमारे गुरुदेव

हम छोटी बुद्धि से बडी बात करने की चेष्टा कर रहे हैं- एक ऐसे युग पुरुष जो- बुद्धि- तप – ज्ञान- त्याग- सदाचार- शील- संतोष- सुह्रदयता- कहाँ तक कहूँ हर शब्द जिनके आगे छोटा लगता है- सभी गुणों की खान है

तो जानते हैं एक श्रृंखला के अंतर्गत पुज्य गुरुदेव पुरीपीठाधिश्वर भगवान शंकराचार्य प्रातः स्मरणीय महाभाग स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती के बारे में ।

पुज्य गुरुदेव के परदादा श्री पं0 श्री दिगम्बर झा ( झा शब्द उपाध्याय के अपभ्रंश ओझा का संक्षिप्त रूप है-) वर्तमान मधुवनी मण्डलान्तर्गत वेनीपट्टी ग्राम बरहा निवासी ‘ दलिहरे बरगमिया ‘ मूलक मूलक कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे — पंडित श्री दिगम्बर झा के एकमात्र पुत्र पंडित श्री बालमुकुन्द झा हुए– श्री बालमुकुन्द झा के ज्येष्ठ पुत्र पंडित श्री यदुवंशी झा विवाहोपरान्त युवावस्था में ही स्वर्गवासी हो गये – उनके कनिष्ठ पुत्र श्री लालवंशी झा हुए- जिनका उपनाम ‘ बचबे झा ‘ हुआ– पंडित श्री लालवंशी झा का विवाह श्री राजराजेश्वरी धाम के सन्निकट दिघवेसन्दहपुर मूलक शाण्डिल्य गोत्रिय परिवार में पंडित श्री रमानन्दठाकुर की कन्या ‘ गीता ‘ देवी से हुआ ।

श्री बालमुकुन्द झा मिथिला में चर्चित भक्ति रस के कवि हुए हैं– उनके सुपुत्र व्याकरण- ज्योतिष और धर्मशास्त्र के विद्वान श्री लालवंशी झा वे श्रोत्रिय ब्राह्मण दरभंगा नरेश के राजपंडित थे – उनकी धर्मपत्नी श्रीमती गीता देवी के गर्भ से ज्येष्ठ पुत्र श्री श्रीदेव झा– मध्यम पुत्र श्रीशुकदेव झा और कनिष्ठ पुत्र नीलाम्बर झा ( यही हमारे पुज्य गुरुदेव) हुए– इनकी एक बडी शशिकला देवी हुईं ।

श्री नीलाम्बर का जन्म विक्रमसंवत 2000 आषाढ कृष्ण त्रयोदशी उपरान्त चतुर्दशी -बुधवार -रोहिणी नक्षत्र – वृषराशि- तदनुसार 30 जून 1943 में हुआ — जन्म समयानुसार नाम ‘ वेदानन्द ‘ था जो पिता जी ने राशि अनुसार रखा- उन्होंने स्वयं ही बालक की जन्म कुंडली बनाई- ज्येष्ठ भ्राता श्री श्रीदेव झा जी ने अपने अनुज का नाम ” नीलाम्बर ” रखा । नीलाम्बर के दो अग्रज स्वल्पायु में ही काल कवलित हो गये थे — ऐसा सोचकर माताओं ने शिशु का नाम ‘ घुरन ” रखा– गाँव में अधिकांश व्यक्ति नीलाम्बर को इसी नाम से जानते थे ।

पलने में शिशु नीलाम्बर को नित्य ही कई बार अद्भुत दृश्य दीखते– काली साडी पहने हुई कई विकराल स्त्रियाँ एक साथ शिशु पर तीक्ष्ण तलवार का प्रहार करतीं– बालक सहसा आँखे मींच लेता और चौंक पडता– प्रायः वर्ष भर यह क्रम चला। इस घटनाक्रम ने शिशु को पलने में ही अद्भुत बोध प्रदान किया– ” मैं कोई मरने वाला तत्व नहीं ” यद्यपि मातृभाषा आदि का बोध नहीं था — फिर भी गर्भगत ॠषिसंज्ञा- सम्प्रदाय मनुष्यों को कई जन्मों के परिज्ञान के तुल्य यह दिव्य बोध बालक को मातृभाषा में भगवत्कृपा से हुआ- जिसका स्मरण भी बना रहा।

बालक की आयु लगभग दो वर्ष थी — रात्रि में पिता के पास शयन कर रहा था – – वह हठात् चौंक पडा और रोने लगा- रोते हुए वाणी में बोल पडा ” राधा किञ्च के गन्हा हेरा गेलैन ” ( राधा कृष्ण का गहना खो गया ) पिता की नींद खुली– बालक को पुचकारा– परन्तु वह तो बिलख- बिलख कर रोते हुऐ वही रट लगाए जा रहा था– “राधा किञ्च के गन्हा हेरा गेलैन “

*रात बीती ! घर वाले सब हैरान बालक को क्या हो गया — ये क्या कह रहा है– बालक ने स्वयं को अकेला पाया– घर के बाहर तालाब और अपने बाग फिर दूशरे तालाब के किनारे से वह प्रथम बार दूशरे मुहल्ले में राधा- कृष्ण के प्रांगण में पहुँच गया और भगवान की ओर निहारने लगा– सहसा उस दिगम्बर शिशु के समीप दिगम्बर श्री कृष्ण पहुँच गए — दोनों कन्धों पर हाथ रखा – दृष्टि से दृष्टि मिलाई– और विह्वल होकर बोल पडे- “ हमर गहना हेरा गेल , कतउ देखलऊँ है *”
दिव्य स्पर्श लाभ कर स्नेहिल नेत्रों की चोट खाकर – करूण स्वरलहरी का श्रवण कर बालक नीलाम्बर समझ गया- ये मेरे सखा श्री कृष्ण हैं— बालगोपाल अन्तर्हित हो गये – बालक द्रुत गति से अपने घर आ गया– मातृ- तुल्या बाल विधवा अपनी बहन से बोला ” उस मंदिर में रहने वाले मेरे भगवान के गहने खो गये हैं, तुमने देखें हैं क्या ” बहन आश्चर्यचकित हो गई– कहाँ नन्हा- सा बालक- कहाँ दूसरे मुहल्ले का मंदिर- यह अकेले दो – दो सरोवर के किनारे से इतनी कम आयु में अप्रत्याशित रीति से वहाँ कैसे पहुँच गया– इसे कौन मिल गया? ये क्या बोलता है? इसका हाव- भाव भी अद्भुत है- बहन ने पुत्रतुल्य भाई को ह्रदय से लगाया और गोद में उठाया- झटपट मन्दिर वाले ब्राह्मण के घर गई — अपनी बाल विधवा सहेली को सब कुछ रात से अब तक घटना सुनाई- तो सहेली ने कहा ” सच है , आज रात श्री राधाकृष्ण के आभुषणों की चोरी हो गई है ” ।

*दोनों के नेत्रों में अविरल प्रेमाश्रु– अरे , इस छोटे से बालक को भगवान ने दर्शन दिया — इसे स्वप्न में भी आभूषण चोरी की बात बता दी– इसके कन्धों पर हाथ रखा — इससे सम्भाषण किया– धन्य है प्रभु की करूणा– धन्य है बालक जीवन *।
*भगवान की योगमाया ने इस इस घटना के प्रचार – प्रसार को सीमित कर दिया *।
आप का उत्साह मिले तो पूरा वृतांत शनैः शनैः आप तक पहुँच जायेगा —
कहीं कोई त्रुटि हो तो क्षमा करना ।
*सौजन्य श्री अनिल वशिष्ठ *

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2 thoughts on “दिव्यानुभूति | निश्चलानंद सरस्वती जी | Part 1

  1. Abhinav says:

    Nice bro bohot accha likha bhai sach mai love it assa or daalo 💕💕

  2. Khushal says:

    Adbhut ❤️ jai shri jagannath

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